(सन १९५८ मैं प्रसारित लेख)
यह सर्वविदित है कि गत आम चुनाव के पूर्व लोकसभा में हिंदू कोड बिल पर विचार हुआ था । प्रस्तुत बिल की धाराएँ ‘हिंदू लॉ’ की परंपराओं तथा रीति-रिवाजों के बिलकुल प्रतिकूल होने के कारण सर्वसाधारण जनता में इसकी आत्यथिक तीव्र प्रतिक्रया हुई । यध्यपि इस बिल के प्रवर्तक तथा सत्ता के शीर्ष पर बैठे हमारे सर्वेसर्वा नेता हिंदुओं का ‘आधुनिकीकरण’ करने, अर्थात् हिंदुओं को अहिंदू तथा अराष्ट्रीय बनाने की अपनी सनक में बिल को पास कराने के बहुत इच्छुक थे, परंतु आनेवाले चुनावों पर दृष्टि रखते हुए उन्होंने अपने प्रयास को छोड़ने में ही बुद्धिमानी समझी ।
हिन्दुओं ने यह सोचा कि इस बिल को वापस लेकर, उसकी भावनाओं का समादार किया गया है और हमारी सामाजिक व्यवस्था, जो वैज्ञानिक एवं स्यायी सिद्धांत पर प्रसन्न होकर, उसने पुन: उन्हीं लोगों को सत्ता में प्रतिष्ठित कराया । फिर से चुनकर आना सत्ताधीशों की कपटनीति की सफलता घोषित करनेवाला है । जनता को धोके में रखनेवाली इस योजना को बनाने तथा क्रियान्वित करनेवाले व्यक्ति इस कपटपूर्ण चतुराई के लिए बधाई के पात्र हैं ।
पाश्चात्यों की भक्ति
गत अनुभव से सीख लेकर सरकार की लोकप्रियता एवं प्रतिष्ठा को खतरे में डाले बिना हिंदू कोड बिल को पुन: नहीं लाया जा सकता था, किंतु राज्य का संचालन करनेवाले नेतागन, हिंदू समाज के संपूर्ण स्वरूप को बदल डालने के लिए दृढ़प्रतिज्ञ प्रतीत होते हैं, ताकि इस भारतभूमि में हिंदू, अर्थात् भारतीय अथवा राष्ट्रीय कि कोई अवशेष बाकी न रह जाए । इससे उन्हें क्या हासिल होगा, यह कल्पना से परे है । हाँ, यह संतोष हो सकता है कि वे जनता को पाश्चात्य आदर्शों के अनुसार ढालने में सफल हुए हैं । साथ ही संसार के सामने विदेशियों के प्रति अपनी दासोचित भक्ति को प्रकट कर सकते हैं । इसी हीन-भावना के साथ वे कार्य कर रहे हैं । उन्हें एक संतोष यह भी मिल सकता है कि जो-जो उत्तम एवं पूजनीय था, जनता की श्रद्धा का केंद्र था, उसे विकृत तथा नष्ट करने में वे सफल हुए हैं ।
अब उनके सामने प्रश्न था कि जनरोष को टालते हुए इस बिल को कानून का रूप कैसे दिया जाए । इस गुत्थी को सुलझाने का रास्ता यह निकाला गया है कि बिल के छोटे-छोटे भाग कर उसे विभिन्न शीर्षकों में विभाजित कर दीया गया है । इस प्रकार जनता के रोष व तिरस्कार से बचने से लिए उसी हिंदू कोड बिल को पुन: लाया जा रहा है । धीरे – धीरे ये सारे टुकड़े एक के बाद एक पारित करवाए जाएँगे और जनता को आभास हुए बिना पूरा कानून बन जाएगा । जनता से विश्वास एवं श्रद्धा को समाप्त करने के लिए धीमा विष देने का यह एक उदाहरण है ।
जनादार नहीं
इस समय लोकसभा के सामने विवाह, तलाक, उत्तराधिकार आदि से संबंधित जो विधेयक हैं, वे हिंदू कोड बिल के अंश हैं । यह दिखाने के लिए कि इस बिल की जनता की ओर से ही बहुत माँग हो रही है, हाल ही में यह बताया गया कि कुछ महिलाओं ने बिल को शीघ्रता से पास करने को लिए सरकार को एक प्रार्थना-पत्र दिया है, जिसपर पचास हजार महिलाओं के हस्ताक्षर हैं । चालीस करोड़ जनसंख्या के देश में वयसक महिलाओं की संख्या आसानी से दस करोड़ से अधिक होगी । महिलाओं की इतनी विशाल संख्या के सामने पचास हजार का क्या महत्व है? इसका इतना प्रचार किया गया है, मानो बिल को पक्ष में यह एक प्रबल लोकप्रिय दबाव है, जिसे टालना असंभव हो । यदि पचास हजार का इतना दबाव हो सकता है, तब गाय, बैल सदृश असहाय पशुओं की हत्या पर प्रतिबंध लगाने से लिए संपूर्ण देश में से लगभग दो करोड़ वयस्कों के हस्ताक्षरों से युक्त प्रार्थना-पत्र का क्या हुआ, जो सरकार को दिया गया था? क्या वर्तमान सरकार की दृष्टि में दो करोड़ की अपेक्षा पचास हजार अधिक होते हैं?
इससे एक तथ्य स्पष्ट प्रकट होता है कि वर्तमान सरकार हिंदू जीवन-पद्धति, विश्वासों तथा श्रद्धा की घोर विरोधी है तथा उसने इसे जड़ से नष्ट करने का निश्चय किया हुआ है । उसके दाँत और नाखून उनके खिलाफ ही काम करते हैं । उसकी इसी सनक ने उसे इस भ्रम में डाल दिया है कि हिन्दुओं के विरुद्ध कदम उठाने के लिए पचास हजार बडी़ प्रभावी संख्या है, जबकि हिंदू परंपराओं के समर्थन में उसे दो करोड़ भी नगण्य लगते हैं । भले ही वह गाय, बैल की हत्या पर रोक लगाने एवं इस पवित्र प्राणी विशेष की रक्षा करने जैसी हिंदू श्रद्धा का महत्वपूर्ण विषय हो ।
राज्यकर्ताओं से सावधान
जनता को यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए तथा इस संतोष में भी नहीं रहना चाहिए कि हिंदू कोड बिल का खतरा समाप्त हो गया है । वह खतरा अभी ज्यों का त्यों बना हुआ है, जो पिछले द्वार से उनके जीवन में प्रवेश कर उनकी जीवन की शक्ति को खा जाएगा । यह खतरा उस भयानक सर्प के सदृश है, जो अपने विषैले दाँत से दंश करने को लिए, अंधेरे में ताक लगाए बैठा हो ।
लोगों को सतर्क होकर ऐसे सभी उपायों का दृढ़ निश्चय के साथ विरोध करना चाहिए, जो उन लोगों द्वारा प्रसतुत किए जाते हैं, जिनके लिए ‘हिंदू’ शब्द ईश्वर के शाप के समान है । जिन्हें ‘हिंदू’ नाम की किसी भी वस्तु के प्रति कोई प्रेम अथवा आदर नहीं है । उनको हिंदू तत्वज्ञान और जीवन-प्रणाली की जानकारी तो लेशमात्र भी नहीं है ।
श्री गुरुजी समग्र
खंड ६, ६२,६३,६४
डा. हेडगेवार स्मारक समिति
डा. हेडगेवार भवन
महाल,
नागपुर – ४४००३२